23-10-70 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन

“महारथी बनने का पुरुषार्थ” 

रूहानी ड्रिल आती है, ड्रिल में क्या करना होता है? ड्रिल अर्थात् शरीर को जहाँ चाहे वहाँ मोड़ सकें और रूहानी ड्रिल अर्थात् रूह को जहाँ जैसे और जब चाहे वहाँ स्थित कर सकें अर्थात् अपनी स्थिति जैसे चाहे वैसी बना सकें, इसको कहते हैं रूहानी ड्रिल। जैसे सेना को मार्शल वा ड्रिल मास्टर जैसे इशारे देते हैं वैसे ही करते हैं। ऐसे स्वयं ही मास्टर वा मार्शल बन जहाँ अपने को स्थित करना चाहें वहाँ कर सकें। ऐसे अपने आपके ड्रिल मास्टर बने हो? ऐसे तो नहीं की मास्टर कहे हैंड्स डाउन और स्टूडेंट्स हैंड्स अप करें। मार्शल कहे राईट तो सेना करे लेफ्ट। ऐसे सैनिकों वा स्टूडेंट्स को क्या किया जाता है? डिसमिस। तो यहाँ भी स्वयं ही डिसमिस हो ही जाते हैं – अपने आधिकार से। प्रैक्टिस ऐसी होनी चाहिए जो एक सेकण्ड में अपनी स्थिति को जहाँ चाहो वहाँ टिका सको। क्योंकि अब युद्ध स्थल पर हो। युद्ध स्थल पर सेना अगर एक सेकण्ड में डायरेक्शन को अमल में न लाये तो उनको क्या कहा जावेगा? इस रूहानी युद्ध पर भी स्थिति को स्थित करने में समय लगाते हैं तो ऐसे सैनिकों को क्या कहें। आज बापदादा पुरुषार्थी, महारथी बच्चों को देख रहे हैं। अपने को जो महारथी समझते वो हाथ उठाओ (थोड़ों ने हाथ उठाया) जो महारथी नहीं है वह अपने को क्या समझते हैं? अपने को घोड़ेसवार समझते हैं वह हाथ उठावें। जिन्होंने महारथियों में हाथ नहीं उठाया उन्हों से बापदादा एक प्रश्न पूछ रहे हैं। अपने को बापदादा का वारिस समझते हो? जो अपने को घोड़ेसवार समझते हैं वह अपने को वारिस समझते हैं? वारिस का पूर्ण अधिकार लेना है वा नहीं? जब लक्ष्य पूरा वर्सा लेने का है तो घोड़ेसवार क्यों? अगर घोड़ेसवार हैं तो मालूम है नम्बर कहाँ जायेगा? सेकण्ड ग्रेड वाले कहाँ आयेंगे इतनी परवरिश लेने के बाद भी सेकण्ड ग्रेड। अगर बहुत समय से सेकण्ड ग्रेड पुरुषार्थ ही रहा तो वर्सा भी बहुत समय सेकण्ड ग्रेड मिलेगा। बाकी थोड़ा समय फर्स्ट ग्रेड में अनुभव करेंगे। सर्वशक्तिमान बाप के बच्चे कहलाने वाले और व्यक्त-अव्यक्त द्वारा पालना लेने वाले फिर सेकण्ड ग्रेड। ऐसे मुख से कहना भी शोभता नहीं है। या तो आज से अपने को सर्वशक्तिमान के बच्चे न कहलाओ।

बापदादा ऐसे पुरुषार्थियों को बच्चे न कहकर क्या कहते हैं? मालूम हैं? बच्चे नहीं कच्चे हैं। अभी तक भी ऐसा पुरुषार्थ करना बच्चों के स्वमान लायक नहीं दिखाई पड़ता है। इसलिए फिर भी बापदादा कहते हैं कि बीती सो बीती करो। अब से अपने को बदलो। महारथी बनने लिए सिर्फ दो बातें याद रखो। कौन-सी? एक तो अपने को सदैव साथी के साथ रखो। साथी और सारथी, वह है महारथी। पुरुषार्थ में कमज़ोरी के दो कारण हैं। बाप के स्नेही बने हो लेकिन बाप को साथी नहीं बनाया है। अगर बापदादा को सदैव साथी बनाओ तो जहाँ बापदादा साथ है वहाँ माया दूर से मूर्छित हो जाती है। बापदादा को अल्प समय के लिए साथी बनाते हैं इसलिए शक्ति की इतनी प्राप्ति नहीं होती है। सदैव बापदादा साथ हो तो सदैव बापदादा से मिलन मनाने में मगन हों। और जो मगन होता है उसकी लगन और कोई तरफ लग न सकें। शुरू-शुरू में बाप से बच्चों का क्या वायदा हुआ है? तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से बैठूं, तुम्हीं से रूह को रिझाऊं। यह अपना वायदा भूल जाते हो? अगर सारे दिनचर्या में हर कार्य बाप के साथ करो तो क्या माया डिस्टर्ब कर सकती है? बाप के साथ होंगे तो माया डिस्टर्ब नहीं करेगी। माया का डिस्ट्रकशन हो जायेगा। तो भल बाप के स्नेही बने हो लेकिन साथी नहीं बनाया है। हाथ पकड़ा है साथ नहीं लिया ही इसलिए माया द्वारा घात होता है। गलतियों का कारण है गफलत। गफ़लत गलतियां कराती है।

अगर रूह को न देख रूप तरफ आकर्षित होते हैं तो समझो मुर्दे से प्रीत कर रहे हैं। मुर्दे से प्रीत रखने वाले को समझना चाहिए कि हमारा भविष्य मुर्दाघाट में कार्य करने का है। जिस समय ऐसा संकल्प भी आये तो मुर्दा घाट का पार्ट समझो। सभी को कहते हो ना एम और ऑब्जेक्ट को सामने रखो। तो जो भी कार्य करते हो, जो भी संकल्प करते हो उसके लिए भी लक्ष्य और प्राप्ति अर्थात् एम ऑब्जेक्ट सामने रखो। सर्वशक्तिमान बाप वरदाता से अपना कल्प-कल्प इसी पार्ट का वर्सा लेने लिए आये हो। मुर्दे को सुरजीत करने वाले मुर्दा घाट में पार्ट नूँधने लिए आये हैं? अपने से पूछो। जो भी बच्चा अपनी गलतियों को एक बार बाप के सामने रखता है उनको यह समझना चाहिए कि बाप के आगे अपनी कमियों को रखने के बाद अगर दुबारा कर लिया तो क्षमा के सागर के साथ 100 गुणा सजा से बचाने लिए सदैव बापदादा को अपने सामने रखो। हर कदम बापदादा को फालो करते चलना है। हर संकल्प को हर कार्य को अव्यक्त बल से अव्यक्त रूप द्वारा वेरीफाई कराओ। जैसे साकार में साथ होता है तो वेरीफाई कराने बाद प्रैक्टिकल में आते हैं। वैसे ही बापदादा को अव्यक्त रूप से सदैव सम्मुख वा साथ रखने से हर संकल्प और हर कार्य वेरीफाई कराकर फिर करने से कोई भी व्यर्थ विकर्म नहीं होगा। कोई द्वारा भी कोई बात सुनते हो तो बात का साज़ में न जाकर राज़ को जानों। राज़ को छोड़ साज़ को सुनने से नाज़ुकपन आता है। कभी भी नहीं सोचो कि फलाना ऐसे कहता है तब ऐसा होता है लेकिन जो करता है सो पाता है। यह सामने रखो। दूसरे के कमाई का आधार नहीं लेना है। न दूसरे की कमाई में आँख जानी चाहिए। जिस कारण ही ईर्ष्या होती है। इसके लिए सदैव बाप का यह स्लोगन याद रखो की अपनी घोंट तो नशा चाहे। दूसरे के नशे को निशाना नहीं बनाओ। लेकिन बापदादा के गुण और कर्तव्य को निशाना बनाओ। सदैव बापदादा के कर्तव्य की स्मृति रखो कि बापदादा के साथ मैं भी अधर्म के विनाश अर्थ निमित्त हैं वह स्वयं फिर अधर्म का कार्य वा दैवी मर्यादा को तोड़ने का कर्तव्य कैसे कर सकते हैं। मैं मास्टर मर्यादा पुरुषोत्तम हूँ। तो मर्यादाओं को तोड़ नहीं सकते हैं। ऐसी स्मृति रखने से समान और सम्पूर्ण स्थिति हो जाएगी। समझा। सोचो कम, कर्तव्य अधिक करना है। सिर्फ सोचने में समय नही गंवाना है। सृष्टि के क़यामत के पहले कमज़ोरी और कमियों की क़यामत करो।
भट्ठी वालों ने भट्ठी में अपना रूप और रंग और रौनक बदली की है। अनेक रूप बदलना मिटाया है? सदा के लिए रूहानी रूप दिखाई दे ऐसा अपने को बनाया है? उलझनों का नाम निशान न रहे ऐसा अपने को उज्जवल बनाया है? अल्पकाल के लिए प्रतिज्ञा की है वा अन्तकाल तक प्रतिज्ञा की है? अपनी पुरानी बातों, पुराने संस्कारों को ऐसा परिवर्तन में लाना है। जैसे जन्म परिवर्तन होने के बाद पुराने जन्म की बातें भूल जाती हैं। ऐसा पुराने संस्कारों को भस्म किया है वा अस्थियाँ रख दी है? अस्थियों में फिर से भूत प्रवेश हो जाता है। इसलिए अस्थियों को सम्पूर्ण स्थिति के सागर में समा के जाना है। कहाँ छिपाकर ले न जाना। नहीं तो अपनी अस्थियाँ स्थिति को परेशान करती रहेंगी। संकल्पों की समाप्ति करनी है। अच्छा –

तुम हरेक बच्चे को पुरुषार्थ करना है तख़्तनशीन बनने का न कि तख़्तनशीन के आगे रहने का। तख़्तनशीन तब बनेंगे जब अब समीप बनेंगे। जितना जो समीप होगा उतना समानता में रहेगा। तुम बच्चों के नैनों को कोई देखे तो उनको मुक्ति जीवनमुक्ति का रास्ता दिखाई दे। ऐसा नयनों में जादू हो। तो आप के नैन कितनी सेवा करेंग नैन भी सर्विस करेगा तो मस्तिष्क भी सर्विस करेगा। मस्तिष्क क्या दिखाता है, आत्माओं को? बाप। आपके मस्तिष्क से बाप का परिचय हो ऐसी सर्विस करनी है तब समीप सितारे बनेंगे। जैसे साकार में बाप को देखा मस्तक और नैन सर्विस करते थे। मस्तिष्क में ज्योति बिंदु रहता था, नैनों में तेज त्रिमूर्ति के याद का। ऐसे समान बनना है। समान बनने से ही समीप बनेंगे। जब आप स्वयं ऐसी स्थिति में रहेंगे तो माया क्या करेगी, माया स्वयं ख़त्म हो जाएगी। तुम बच्चों को रेग्यूलर बनना है। बापदादा रेग्यूलर किसको कहते हैं। रेग्यूलर उनको कहा जाता है जो सुबह से लेकर रात तक जो कर्तव्य करता है वह श्रीमत के प्रमाण करता है। सब में रेग्यूलर। संकल्प में, वाणी में, कर्म में, चलने में, सोने में, सबमें रेग्यूलर। रेग्यूलर चीज़ अच्छी होती है। जितना जो रेग्यूलर होता है उतना दूसरों की सर्विस ठीक कर सकता है। सर्विसएबुल अर्थात् एक संकल्प भी सर्विस के सिवाए न जाए। ऐसे सर्विसएबुल और कोई सबूत बना सकते हैं। सर्विस केवल मुख की ही नहीं लेकिन सर्व कर्मेन्द्रियाँ सर्विस करने में तत्पर हो। जैसे मुख बिज़ी होता है वैसे मस्तिष्क, नैन सर्विस में बिज़ी हो। सर्व प्रकार की सर्विस कर सर्विस का सबूत निकालना है। एक प्रकार की सर्विस से सबूत नही निकलता सिर्फ सराहना करते हैं। चाहिए सबूत, तो सबूत देने लिए सर्व प्रकार की सर्विस में सदा तत्पर रहना है। सर्विसएबुल जितना होगा वैसा आप समान बनाएगा। फिर बाप समान बनाएगा।

अच्छा !!!